हँसकर चले गए जो शहादत के राहों में
आखिरी सांस तक लड़ते रहे डटकर जो
घर लौटे भी तो तिरंगे में लिपटकर जो
गावों -शहरों के कुछ मकानों में
चराग़ भी बुझे बुझे से जलते है
कुछ घरों के चौखट - दालानों में
घर लौटे भी तो तिरंगे में लिपटकर जो
डूब जाता है पूरा देश हर साल
जश्न ए चराग़ की रौशनी में
पर अँधेरा सा ही बना रहता हैगावों -शहरों के कुछ मकानों में
चराग़ भी बुझे बुझे से जलते है
कुछ घरों के चौखट - दालानों में
खो दिया जिसने वतन के वास्ते
अपने जीवन और घर का चराग़
और खो गया उन थके बूढ़ी आँखों के
कुछ अधूरे - अनकहे से ख़्वाब
तमाम ऐसी चराग़ों की शाम
अमर शहीदों की यादों के नाम
दिल से उन्हें नमन मेरा
दिल से उन्हें मेरा सलाम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.