कोई ख़िज़ाँ न आ जाये
मस्लहत-ए-वक़्त यही है
गुलशन को बचाया जाये
बेरहम अँधियो ने छीन ली
आसियाने जिनके कभी
मासूम उन परिंदो को फिर
उनके शज़र में बसाया जाये
सरहदों से जो सेना के जाबांज़
तिरंगे में लिपटकर घर आये है
राहों में उनकी शहादत के चराग़
ब-'इज्जत-ए-एहतिराम जलाया जाये
मस्लहत-ए-वक़्त - समय की पुकार
ब-'इज्जत-ए-एहतिराम - पूरे सम्मान के साथ
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