ग़ुम था मैं फ़िक्र-ए-हयात में

 

ग़ुम था मैं फ़िक्र-ए-हयात में
सोचा न था तुझसे मिलकर 
एक पल में सारे सपने 
मेरे हसीन हो जायेंगे 

यकीं न था कि ऊपरवाला यूँ 
मेहरबाँ हो जायेगा मुझपर 
किताब- ए- जिंदगी के बचे पन्ने
मेरे रंगीन हो जायेंगे 



फ़िक्र-ए-हयात  - जीवन की समस्स्यओं की चिंता

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.