बेदिली उलझनों के राह से गुजर रही थी जिंदगी

 



बेदिली उलझन भरी राहों से 
गुजर रही थी जिंदगी
बिना शिकवा- शिकायत के

बाद-ए-सबा बनकर वो
मुझसे यूँ टकरा सा गया


ज़ख्म सारे भर दिए  दिल के
अपने  प्यार के मरहम से
बरस गया अब्र बनकर वो

शज़र पे दिल के एक नया
फूल भी खिला सा गया

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