चेहरा ही जिसका उन्वान रहता है
मिल जाये दिल ग़र सफर में फिर
अनजान भी कहाँ अनजान रहता है
राह ए इश्क़ में नहीं एक सा
कभी दिल -ए -नादाँ रहता है
शब् -ए -वस्ल में गुलिश्तां सा
ग़म -ए -हिज़्र में मगर बे-जान रहता है
जुस्तजू -रूबरू-आरजू -गुफ्तगू
इन्हीं चंद लब्ज़ो के दरम्यां रहता है
राह ए जिंदगी में बनता बिखरता
हर मोड़ पर इसका अरमां रहता है
नफरतों के जद में ग़र आ जाये फिर
कभी बदगुमां तो कभी पशेमां रहता है
हौसला ग़र ये कर ले तो फिर
मुट्ठी में इसके आसमां रहता है
गिरता है गिरकर फिर संभालता है
परबाज़ों सा इसका उड़ान रहता है
जवानी की दहलीज़ पर हो या
हो उम्र के आखिरी सफर में
दिल तो हमेशा ही जवाँ रहता है
उन्वान : शीर्षक, प्रस्तावना
बदगुमां - दूसरे के बारे में बुरे विचार रखने वाला,
पशेमां - शर्मिंदा, लज्जित, अफ़सोस करने वाला, पछताने वाला
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