जुदा हुआ वो शख्श तो यादों की बारात दे गया

 

जुदा हुआ वो शख्श तो
यादों की बारात दे गया
हिज़्र ,ग़म ,तन्हाई ,आँशु
मुझे ढेरों सौगात दे गया

कुछ दुआ से उसके हर्फ़ थे
मुझे जिंदगी भी जो दे गई
ख्वाबों में आकर वो मेरे
कई सारे नग़मात दे गया

सेहरां में ख़ामोशी के फिर
तिश्नगी दिल की बढ़ गई
आँखों में अब्र उतर आया
इस दिल को बरसात दे गया

दिल के सितारे टूटकर फिर
आसमाँ में ग़ुम कहीं हो गए
मेह्ताब अंधेरों में फिर खो गया
शब-ए-ग़म की इफ़रात दे गया

एक ख़्वाब था जो बिखर गया
एक अज़ाब दिल में भर गया
इस दिल को मज्ज़ूब कर के वो
मुझे ज़िंदगी की ख़ैरात दे गया


हर्फ़  : बात, शब्द,
अब्र : बादल  
तिश्नगी  : प्यास, लालसा, तड़प
शब-ए-ग़म : जुदाई की रात,
मेह्ताब :- चाँद , चाँद की रौशनी 
इफ़रात  : किसी चीज़ की मात्रा या समूह की संख्या बढ़ जाना
अज़ाब  : दुख, यातना, तकलीफ़, दुख दर्द، पीड़ा
मज्ज़ूब  : किसी विषय में डूबा हुआ, तल्लीन, तन्मय, मस्त, दीवाना,
ख़ैरात :  भिखमंगों आदि को दान रूप में दिया जानेवाला धन या पदार्थ,  भिक्षा

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