यकसाँ होती है हर्फ़-ए-निदा बेज़ान होते ही पैकर की

 

यकसाँ होती है हर्फ़-ए-निदा
बेज़ान होते ही पैकर की

फिर चाहे वो अमीर-ए-शहर का हो
कि रहगुज़र के किसी मुफ़लिस का

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