कुदरत की ये कहर न थी कुछ इंसा ही गुनहगार थे

कुदरत की ये कहर न थी 
कुछ इंसा ही गुनहगार थे   
उन हज़ारो  मौत 
और महाबिनाश के 

साल-दर-साल  गुजरता  रहा 
वक़्त दर्द भरता  रहा 
गुम हो  गए वो रफ्ता रफ़्ता
पन्नो  में  इतिहास  के 

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