वो शख़्स मेरे आँखों से ओझल होता चला गया

 

वो शख़्स मेरे आँखों से
ओझल होता चला गया
रफ़्ता- रफ़्ता, गोधूलि के साये में


बेबस निगाहों से देखता रहा मैं
उसे खुद से दूर जाते हुए, निर्निमेष

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.