बुलंदी आसमां का
वो जाने कि जिसने
बुलंद-परवाज़ी की हो
परिंदा कोई
क़फ़स-ज़ाद
आसमां क्या जाने
किसी आबला-पा मुसाफ़िर से
पूछो हयात-ए-सफ़र का हाल
जो घर से ही न कभी निकला हो
वो रास्ता क्या जाने
'इबादत की हो जिसने
यक़ीनन वो सज्दा जाने
एक काफ़िर से क्या पूछो
वो ख़ुदा क्या जाने
अहल-ए-दिल हो ग़र तो
बेशक़ हाल ए दिल जाने
सदा-ए-दिल किसी के
बे-दिल कोई क्या जाने
बा-वफ़ा हो ग़र तो
बेशक़ वो वफ़ा जाने
दिल से जो बे-वफ़ा हो
वो वफ़ा क्या जाने
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