काश ये मुमकिन हो पाता मेरे लिए



काश ये मुमकिन हो पाता मेरे लिए 

काश ये मुमकिन हो पाता मेरे लिए 
कि मै तेरी यादों को एक पल में भुला देता 

वो सारे जज़्बात मोहब्बत के 
जो मैंने लिखे थे कभी काग़ज पर 
लब्ज़ों को हर्फ़ दर हर्फ़ जला देता

काश ये मुमकिन हो पाता मेरे लिए 

कि मै बंद कर देता
वो दरीचा-हा-ए-ख़याल
जिसमें तुम नज़र आती हो मुझे 

कि मुझे हरगिज़ न आते 
ये तसब्बुरात जो तुम्हारे 
सम्त ले जाते है मुझे 

मेरे चाहे बगैर तुम 
बिना इज़ाज़त के
चली आती हो मेरे ख्यालों मै 

और लिख जाती है मुझमे 
दर्द- यादें, कसमें- वादें 
वहसत ए दिल के रिसालों में 


काबिज़ हो तुम इस क़दर 
मेरे ख्वाबों और ख्यालों पर 

महरूम हूँ मैं अपने ख़यालो से 
अलफ़ाज़-ए-दिल भी लिखने के लिए 

जो भी लिखता हूँ मुझसे फ़क़त 
वो तुम्हारी बेताबियाँ लिखवाती है 

काश ये मुमकिन हो पाता मेरे लिए 


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