बशर इश्क़ को इश्क़ ही रहने दे, इसे गदागरी न बना

 


चश्म-ए-कासा-ए-गदाई
दस्त-ए-दिल में लिए

क्यू उसके दर पर रुका है
अफ़सुर्दा अबतलक तू


बशर  इश्क़ को इश्क़ ही
रहने दे, गदागरी न बना

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