वो मुझसे दूर जाना चाहती है

 

फ़ना जो हो गया उसपर 
महज़ सादा- दिली पे उसकी
पाक़ीज़ा इश्क़ की ताकत को 
अब वो आज़माना चाहती है
 
वो मुझसे दूर जाना चाहती है

मुझे यादें देकर तमाम अपनी
वो मुझे याद आना चाहती है

मोहब्बत का हसीं सा फिर
कोई नया ठिकाना चाहती है

वो मुझसे दूर जाना चाहती है


जला कर जिस्म से मुझे रूह तक
शमा एक नया परवाना चाहती है

अशआरों में मेरे पोशीदा हर
लफ्ज़ अब वो गुनगुनाना चाहती है

वो मुझसे दूर जाना चाहती है

दिलों से खेलना और 
खेलकर फिर तोड़ देना 
अज़ीब शौक़ है उसका 
बाद इस दिल के पगली 
फिर एक नया खिलौना चाहती है 

वो मुझसे दूर जाना चाहती है

सर-ए-महफ़िल में कह दी 
दिल की बातें, बातों-बातों में 
बयां करने को दर्द- ए- दिल 
मगर यूँ गीत - ग़ज़लों में
क़लम मेरी भी हर लफ्ज़ 
मुझसे अब शायराना चाहती है 

वो मुझसे दूर जाना चाहती है


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