मैंने तो मोहब्बत में क़ैद-ए-कफ़स चाही थी


मैंने तो मोहब्बत में क़ैद-ए-कफ़स चाही थी
बेसबब तुम मुझे अब रिहाई क्यू देते हो

ताउम्र तेरा दर्द ग़र लिखू भी तो कभी कम न हो
मेरी क़लम को सुर्ख़ इतनी रोशनाई क्यू देते हो

ए दोस्त तुम्हारी ख़ामोशी कहीं मार ही डाले न मुझे
कि इस चराग़ ए दिल को अब शब् ए तन्हाई क्यू देते हो

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