मैक़दे में सारी रात गुजरी

 

तृषणगी ए ज़ाम ए निग़ाह
अपने औज ए आरज़ू पे थी
अफ़सोस नज़र ए साक़ी
मगर ख़ुम-ओ-सुबू पे थी

मैक़दे में सारी रात गुजरी
फिर भी बशर' तुम प्यासे रहें
तुम जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहें
और पैमाना ए दिल ख़ाली ही रहा

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