रेत के घरोंदों की तरह

 

रेत के घरोंदों की तरह खुद को
तोड़ता और बनाता रहता हूँ

खुद से ही रूठ गया है दिल
अब लोगो को मना- मनाकर

तन्हाई में कहीं बैठकर अब
इस दिल को मनाता रहता हूँ

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