कुचा ए इश्क़ से ख़ामोश गुजर जाता हूँ मैं

 

कुचा ए इश्क़ से ख़ामोश
गुजर जाता हूँ मैं
अपने हर वादों से मदहोश
मुकर जाता हूँ मैं


लफ़्ज़ों में बयां कर नहीं
पाता हूँ जब दिल की बातें
अश्क़ बनकर अपने आँखों से
उतर जाता हूँ मैं


किताब ए दिल को जितना
ही समेटना चाहता हूँ
सफ़्हा -सफ़्हा सारे कमरे में
बिखर जाता हूँ मैं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.