नूर तुझमे है कि जैसे


शायरी  नूर तुझमे है कि जैसे
शय कोई खुदाई हो
अहल ए दिल अहल ए नज़र
तुम आसमां से आई हो

ग़ालिब की हो कोई ग़ज़ल
तुम मीर की रुबाई हो
ग़ुल हो या गुलशन हो तुम
या कली बरनाई हो

वहशत ए दिल हो मेरी
या मेरी तन्हाई हो
छू भी लूँ तुझको जरा
पर हुस्न तुम पराई हो

हयात है आँखों में तेरी
मेरी नज़र की बीनाई हो
बनके तुम लफ़्ज़ ए मोहब्बत
ग़ज़लों में मेरी समाई हो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.