जो सांसे भेजता है
मुझे शब-ओ-रोज़
मै काम उसी का कर रहा
जिस राह से वो कह रहा
उस राह से मै गुजर रहा
मै छलक रहा वो भर रहा
मुझे ख़ाकसार वो कर रहा
करामात से उसके मगर
दिन रात मै बेख़बर रहा
रफ़ाक़ते फिर जुदाइयां
लिखता वही शनासाईयाँ
उसके इशारे पर मरासिम
सँवर रहा कि बिखर रहा
फिर जुस्तजू को कहता वही
इन्ही आरजू और जुस्तजू में
ये जिंदगी दर- ब- दर रहा
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