वस्ल के एक पल को भी

 

वस्ल के एक पल को भी 
न यूँ  गँवाया  कीजिये 
हिज़्र की रस्मों को भी 
दिल से निभाया कीजिये 

थक गए है आप गर 
उनको मनाकर बेहिसाब 
बे-दिली होने से पहले 
खुद रूठ जाया कीजिये 

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