अज़ब दस्तूर है दोहरा

 अज़ब  दस्तूर है दोहरा 

इस ज़माने का भी बशर 

हज़ारो पहरे लगा रखे है 
चराग़ ए मोहब्बत पर इसने 

मगर नफ़रत  की 
चिंगारियों  को  
 दिन - रात हवाए देता है 

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