ग़म-ए-हिज्र : कैसे कह दूँ मेरे पास अब कुछ नहीं तुम्हारा है





कैसे  कह दूँ  मेरे पास 
अब कुछ नहीं तुम्हारा है
तुम्हारे यादों का ज़खीरा है दिल में
मैंने अबतक कुछ नहीं बिसारा है

चंद दिलकश लम्हे हैं शब -ए -वस्ल कि
जावेदाँ है हलावत दिल में जिसकी
गवाह फ़लक का चमकता हर सितारा है

कुछ रंज-वो-दर्द -वो-मलाल है
शब - ए - हिज़्र कि तन्हाइयों का
ग़मों का दिल पर पड़ा जैसे कोई अंगारा है

तेरी यादों के हर लम्हों को
बा-दस्तूर बड़ी सिद्दत से
लिखकर दिल के पन्नों पर
मैंने अपने अश्क़ों से
शब- ए-तन्हाई में तुझे अपने
तसव्वुरातों में उतारा है

                                                                                                 
शब -ए –वस्ल :- मिलन- रात्रि,
जावेदाँ : हमेशा रहनेवाला
हलावत : मिठास,
शब- ए-तन्हाई : रात जो तन्हा गुज़ारी जाये
बा-दस्तूर : जैसा पहले था वैसा ही
तसव्वुरातों : कल्पनाओ
रंज-वो-दर्द -वो-मलाल : दुःख – दर्द और अफ़सोस

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