पैग़ाम-ए-मोहब्बत गुलशन में सुनाये कोई

 


हवा नफ़रतों के गुलशन में न बहाये कोई
अमन के गीत चमन में गुनगुनाये कोई
तपिश से रंजिशों के ग़ुल कहीं न जल जाये
बेसबब हर वक़्त चिंगारिया न जलाये कोई 

मुख़्तलिफ़ ग़ुलों की खुशबू से
गुलशन ये महका है
हर ग़ुल की अपनी अहमियत है
गुलसिताँ ये सबका है

ख़ार नफ़रतों के गुलशन में न उगने पाए 
अब्र मोहब्बत के सरजमीं पर बरसाए कोई 

माना आँधिया भी कई इसे 
तबाह करने के फ़िराक में है
ज़हर के बीज न उग पाएंगे
वतनपरस्ती इसके ख़ाक में है

दिलों में जिससे परस्तिश भर जाये वही 
पैग़ाम-ए-मोहब्बत गुलशन में सुनाये कोई 


 मुख़्तलिफ़ : अनेक प्रकार का, कई प्रकार का




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