सच कहूं ए जिंदगी तुझसे दिल से मोहब्बत हो न सका

 

एक उम्र मैंने गुजार दी 
फ़क़त तुझसे शनासाई में 
पर अबतलक तुझसे मेरा 
रफ़ाक़त न हो सका 

ताउम्र मसरूफ़ियत रही 
तेरे दर्द-ए-ग़म की पज़ीराई में 
सच कहूं ए जिंदगी 
तुझसे मोहब्बत न हो सका 

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