तंज कसते है ग़ुल मुझपर तेरी यादे दिलाकर

 

तंज कसते है ग़ुल मुझपर
अब तेरी यादे दिलाकर
बहारें लौट गई कबके 
गुलशन-ए-दिल वीराना हुआ

तिश्नगी दिल की जो तेरी
एक नज़र से भी मिट जाती थी कभी
नाक़ाम उसको बुझाने में
साक़ी, जाम और पैमाना हुआ 

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