हर वख़त अपनी ही आरज़ू जुस्तजू ये मुझसे चाहती है

 


हर वख़त अपनी ही आरज़ू
जुस्तजू ये मुझसे चाहती है

रहता हूँ जा-ब-जा मैं कहीं
दिल ओ दिमाग मेरा
जू-ब-जू ये मुझसे चाहती है

हर्फ़-दर-हर्फ़ कोई 
नज़्म-ए-मोहब्बत के लिए 
जुदा ओ शख़्स बेशक़
हू-ब-हू ये मुझसे चाहती है

दर्द ए दिल ग़र बयां
लब्ज़ों में करना चाहता हूँ
शायरी जाने क्यू जिग़र का
लहू ये मुझसे चाहती है

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