न तवज्जोह की ख़्वाहिश


न तवज्जोह की ख़्वाहिश
न तग़ाफ़ुल का ग़म
न यूँ बातों - बातों में
में हो जाते बरहम

हुजूम-ए-दहर में भी
है कहीं तनहा से हम
पानी के बुलबुले को
अब कैसा पेच-ओ-ख़म

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