हो रहा है दिल किसी का रफ़्ता रफ़्ता जाने क्यू



इश्क़ को रब की दुआ
समझा इबादत की तरह
पढ़ लिया एक किताब ए दिल
जो हमने आयत की तरह

ज़ीस्त थी बेरंग अपनी
ग़ुम अंधेरों में कहीं
नूर से रौशन हुआ दिल
ख़ुदा की रहमत की तरह
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हो रहा है दिल किसी का 
रफ़्ता रफ़्ता जाने क्यू 

मिट रहा हर फ़ासला है 
रफ़्ता रफ़्ता जाने क्यू 

कल तलक जो अज़नबी था 
आज मेहमां दिल का है 
बढ़ रहा अब राब्ता है 
रफ़्ता रफ़्ता जाने क्यू 

जाने कब एह्सास बनकर 
दिल में मेरे उतर गया 
चढ़ रहा उसका नशा है 
रफ़्ता रफ़्ता जाने क्यू 

लब सिले है मेरे और 
ये राज़ दिल में दफ़्न है 
सुन रहा ये कहकशाँ है 
रफ़्ता रफ़्ता जाने क्यू 


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