जले की दफ़्न हो, एक दिन बदन तो ख़ाक होनी है



जले की दफ़्न हो, एक दिन
बदन तो ख़ाक होनी है
मसअला पैकर का है वो जाने
क़फ़स से रूह तो रिहा होनी है

ख़्वाहिश ए दिल है कि
सबा में घुल के
मेरी ख़ुश्बू फ़िज़ा हो जाये

इससे पहले की तार टूटे
मुसलसल इन सांसो का
जाँ-ब-लब हो हम और
ये जिस्म बेजाँ हो जाये

हसरत ए दिल है कि
ढलकर मै ख़ुद ब ख़ुद
हसीं जज्बातों में
हसीं ग़ज़लों में और
हसीं नग़्मातों में

तमन्ना ए दिल है बशर'
हर्फ़-दर-हर्फ़ उतरकर
दिलों में अहल-ए-दिल
के फ़ना हो जाये

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