निहत्थों पर गोलियां चलाकर



निहत्थों  पर गोलियां चलाकर
बहादुरी क्या तुम दिखलाते हो
अपने आने वाले पीढ़ियों को
बस खून बहाना सिखलाते हो

रोटियों को तरसते है आवाम तेरे
तुम फिर भी आतंक में डुबे हो
बढ़ते भारत के हर एक कदम से
दिल में नफ़रत के रखते मनसूबे हो

हमसे नज़रें तुम मिला सको 
तुम्हारी इतनी भी औकात नहीं 
हमने दुनिया को अमन सिखाया 
तुम्हारे जैसा पीछे से घात नहीं 

दोस्ती तो क्या तुम हमारी 
दुश्मनी के भी क़ाबिल नहीं 
मासूमों पर गोलियां चलानेवालों 
तुम्हारे सीने में तो दिल नहीं 

तुम्हे लहू से खेलने का शौक है तो 
तुम्हे लहू का खेल दिखलायेंगे 
तुम भूल गए पुराने इतिहास 
हम तुम्हे फिर से याद दिलाएंगे 

यूँ कायरों की तरह घात करके
पूरी दुनिया को क्या मुंह दिखलाओगे 
नापाक़ मंसूबे ग़र रखोगे दिल में
तो तुम ख़ुद ब ख़ुद मिट जाओगे


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.