दश्त-ओ-सहरा में दिन रात चल रहा हूँ मैं



दश्त-ओ-सहरा में दिन रात चल रहा हूँ मैं
बरसते आब मैं हूँ फिर भी जल रहा हूँ मैं

ग़मों ने मुझको संभाला है बड़ी मुश्किल से
शब् ए तन्हाई के दामन में पल रहा हूँ मैं

ये क्या कि नींद आ रही है मुझको अब तेरे बिना
लम्हा लम्हा सिराज सा अपने लौ में पिघल रहा हूँ मैं

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