रवा था सफ़र कश्ती का


रवा था सफ़र कश्ती का
मोहब्बत के समंदर में
ना दानिस्ता अपने माझी से
दिल ने की बेबफ़ाई है

लरज़ते होठों से मुसलसल
सदायें देता रहा फिर दिल
ख़ुदा-ओ नाख़ुदा ने मिलकर
दिल की कश्ती डुबाई है

न विसाल ए यार है हासिल
न विसाल ए ख़ुदा ही दिल को
'अहद दोनों से न निभाने की
इस दिल ने सजा पाई है

रवा - जारी
लरज़ते - कांपते
मुसलसल -लगातार
सदायें - आवाजें
विसाल ए यार -अपने प्रिय से मिलन
ना दानिस्ता - बेपरवाही से, बे जाने-बूझे
'अहद -Promise

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