माफ़ कर मुझको ख़ुदा तुझसे रफ़ाक़त की नहीं

माफ़ कर मुझको ख़ुदा 
तुझसे रफ़ाक़त की नहीं 
गुजार दी ये उम्र सारी 
तेरी इबादत की नहीं 

खो गया मै इस सफ़र में 
बस रास्ते बदलता रहा 
झूठ के ही रहगुज़र पर 
रात दिन चलता रहा 

नफरतों को पाला दिल में 
मेहर ओ मोहब्बत की नहीं 

मेरी आरज़ू दौलत रही 
मेरी ज़ुस्तज़ु शोहरत रही 
परस्तिश ए  ख़ुदग़र्ज़ी ही 
मेरी मकसद ए निस्बत रही 

नशे में रहा मै रात दिन 
रूह की हिफाज़त की नहीं 

गुजार दी ये उम्र सारी 
तेरी इबादत की नहीं 
माफ़ कर मुझको ख़ुदा 
तुझसे रफ़ाक़त की नहीं 

दर पे तेरे मैं फ़क़त 
गदागरी करता रहा 
तुझसे अपने ख़्वाहिशों की 
सौदागरी करता रहा 

भूल बैठा पैग़ाम सारे 
कलंदरों ने जो दिए 
रफ़्ता रफ़्ता मैंने सारे 
खलकियत भी खो दिए 

लिबासे साफ़ पहना मगर 
कभी साफ़ नियत की नहीं

माफ़ कर मुझको ख़ुदा 
तुझसे रफ़ाक़त की नहीं 

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