इसलिए छुपकर शराब पीता हूँ


लगाकर दिल अपना
दिलकश सहराओं से
बा-चश्म-ए-तर सराब पीता हूँ

चारा-साज़ी छोड़ दी है
मेरी चारागर ने
हिज़्र ओ ग़म का अज़ाब पीता हूँ

कसमें दे रखीं है मुझको
मेरी शरीक़ ए हयात
फिर भी ये शय ख़राब पीता हूँ

मुझको शरीफ़ समझते है
सारे शहर के लोग
इसलिए छुपकर शराब पीता हूँ

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