तू महज़ चंद अल्फ़ाज़ ही नहीं, मेरे रूह की आवाज़ हो तुम
















तू महज़ चंद अल्फ़ाज़ ही नहीं
मेरे रूह की आवाज़ हो तुम
मेरे खुशी मेरे गम का हमराज ही नहीं
मेरा प्यार मेरा इश्क़ मेरा एहतियाज हो तुम

तुझे लिखता हूँ तुझे पढता हूँ
तुझमे ही जीने मरने की बात कहता हूँ

एक खूबसूरत एहसास हो तुम
जो दिल की गहराइयों से निकलती है
कभी दिल ही दिल में फ़ना होती है
तो कभी लब्ज़ो में बयां होती है

रगों में दौड़ती हो तुम मेरे लहू बन के
सांसो में बहती हो तुम मेरे खुशबु बन के

दिल की हसीन वादिओं  में 
तुम जज़्बात बनके पलती हो
 दिलो को छू के तुम अपना
बना लेती हो जब कभी मेरे
लबों से निकलती हो

सागर के लहरों की तरह  तुम
हरपल दिल में उठती और गिरती हो

मै बेबस किनारे की तरह तुझसे
मिलने का इंतज़ार करता हूँ

हां। मेरी शायरी तुम जान हो मेरी
मै तुझे दिल से प्यार करता हूँ

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एहतियाज -ज़रूरत, आवश्यकता

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