आवारगी में ये जिंदगी यूँ भी गुजर ही रही थी



आवारगी में ये जिंदगी
यूँ भी गुजर ही रही थी
की तुमने कुछ दीवाना
भी बना दिया मुझको

प्यासा था तो रहने ही
दिया होता प्यासा
सांस लेने को यहाँ
जिन्दा सब समझते है

मयस्सर अब तक एक
कतरा भी मुमकिन न था
आँखों से फिर तुमने
समंदर भी पिला दिया मुझको

नशा होता तो कब का
ये उतर ही जाता
मैकदे से निकल कर
मैं अपने घर ही जाता

बात ये न थी की मंजिल
का पता मालुम न था
रास्तो ने ही कुछ इस कदर
खुद में उलझा दिया मुझको

तेरा मुजरिम हूँ 
जो चाहे सजा दो मुझको
अहले वफ़ा की है ये हक़
भी दे दिया तुझको

दिल्लगी चीज़ क्या है
मैं ये तक न समझ पाया
तुमने तो मोहब्बत का
मतलब भी बता दिया मुझको

अब कैद में रखो की
रिहा ही कर दो मुझे
कोई फर्क ही नहीं पड़ता
ये ऐसा रंग है की इस पर
दूसरा कोई रंग भी नहीं चढ़ता

दूर जाके भी तुझसे
न जी सकेंगे अब
की अपने चाहत की जंज़ीरे
तो पहना ही दिया मुझको

तुम आँखों से नहीं
दिल में मेरे दिखते हो
तुम हकीकत में नहीं
खवाबों में रोज मिलते हो

पत्थर था मैं एक
मामूली सा पर अब न रहा
तेरे क़ुरबत ने कोई
हीरा ही बना दिया मुझको





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