समंदर की गहराइयों से कोई सुनामी ही न आ जाये कहीं















ना-क़ाबिल-ए-पामाल है ये कश्ती
जो हौसलों के दम पर फ़क़त
तबाह होकर भी बेरहम लहरों से
तूफानों में अबतक दुरुस्त खड़ा है

समंदर की गहराइयों से कोई
सुनामी ही न आ जाये कहीं
मशतूल थामे हुए जाबाँज़ मांझी भी
आज अपने जिद पे अड़ा है


                                                                                                  
ना-क़ाबिल-ए-पामाल - जो पावों तले मसला न जा सके

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