मुसलसल न आज़माया कर
गिर जाऊ ग़र राहों में तेरे
तो हाँथ पकड़कर उठाया कर
जो मंज़िल-ए-नसीब है ,उनकी
किस्मत का क्या कहना
जो आब्ला-पा है अभी राहों में
तू उनकी हौसला बढ़ाया कर
माना हर सफ़ीने को साहिल
नसीब होता नहीं इस समंदर में
जो तुफानो से लड़कर घायल है
तू उनकी मौज-ए-साहिल बन जाया कर
मुसलसल - निरंतर, लगातार,
आब्ला-पा - जिसके पैरों में छाले पड़ गये हों, थका होना, मायूस होना
मौज-ए-साहिल - साहिल से टकराने वाली मौज
सफ़ीने - नौका, नाव, कश्ती,
मंज़िल-ए-नसीब - जिन्हे मंज़िल मिल गई हो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.