दरख्तों की तरह उगती है मीनारे भी

 

दरख्तों की तरह उगती है मीनारे भी
हर रोज शहर में

कुछ छोटी, कुछ बड़ी तो
कुछ होती है बिशाल
अमल करती है कानून की
तो टिकती है सालो - साल

बर-ख़िलाफ़ जो बनती है
वो पल भर में हीं हो जाती है
जमींदोज शहर में

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