नफ़रतों के जद' में है ये सारा जहां

 

नफ़रतों के जद' में है ये सारा जहां
इसे अम्न-ओ-मोहब्बत ही बचा सकती है

लहरों से नहीं इन कश्तियों को
सिर-फ़िरे, ना-ख़ुदाओ से ख़तरा है

मासूम इन कश्तियों को अब फ़क़त
किसी ख़ुदा की रहमत ही बचा सकती है

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