ए इश्क़ तेरे राहों में



ए इश्क़ तेरे राहों में 
एहतिराम-ए-'इश्क़ तो कम है 
ज़माने की रुसवाई बहुत है 
कि वस्ल-ए-यार तो कम है 
हिज़्र की तन्हाई बहुत है

डगर पे इश्क़ के चलना भी
तो संभल के ए मेरे यार  
कि सर-ए-राह-ए-इश्क़ 
बेबज़ह खाई बहुत है  

कश्ती ए इश्क़ के मुसाफ़िर को
दरिया का क्या पता 
कि इसमें  मौज़े भी तेज़ है
और गहराई बहुत है 

बाज़ी-ए-'इश्क़ में ऐतबार फ़क़त
खुद पे और ख़ुदा पे ही रखना 
कि इसमें रहनुमा तो कम है
तमाशाई बहुत है

मंज़िल ए इश्क़ का भी मिलना 
तो मुक़दर कि बात है  
कि राह ए इश्क़ में लापता
ना-समझ  शैदाई बहुत है 


वस्ल-ए-यार -अपने प्रिय से मिलन
एहतिराम-ए-'इश्क़ - प्रेम का सम्मान 
हिज़्र  -बिरह, जुदाई 
रुसवाई - अपयश, बेइज़्ज़ती, बदनामी 
तमाशाई - तमाशा देखने वाला
शैदाई - प्रेमी

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