मुझे बचाने की कोशिस में
मेरे दर्दे गम की दवा
तो बनी ही नहीं
तो बनी ही नहीं
क्यू मर्तूब आँखों से
छलक रही शबनम की बुँदे
बाबस्तए गम मैंने अब तक
कोई ऐसी बात तो कही ही नहीं
कोई ऐसी बात तो कही ही नहीं
सामान -ए -जंग और तबाहियों का
पामाल मंज़र ही दिख रहा है वहाँ
कोई जाजिब सी जगह उस
शहर -ए -गुलिस्तां में अब बची ही नहीं
हर तरफ फ़क़त ज़हर सा
छाया है हवाओं में वहां
उस शहर की आब-ओ-हवा
पहले सी अब रही ही नहीं
जहाँ में ग़र चलता रहा यूँ ही
जिद -वो -एटमी जंगो का ये सिलसिला
सारा जंगल ही फिर आग के जद' में होगा
छोटा या बड़ा कोई शज़र फिर बचेगा नहीं
मर्तूब - भीगा हुआ
बाबस्तए ग़म - ग़म से सम्बंधित
जाजिब - मनमोहक
पामाल -तबाह ,बर्बाद ,अपमानित
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