आ रहे सिया राम घर को हो रहा सत्कार उनका

निकल पड़ा एक युवराज घर से 

 पिता के महज़ एक आदेश पर 

 १४ बरस बन -बन वो भटका

क्या क्या गुजरी उस दरवेश पर  


गुजार दिए साल कई 

उनके आने के इंतज़ार में 

जूठे बैर भी मीठे लगे 

राम को माँ शबरी के प्यार में 


ये कहकर बड़े भोले पन से 

केंवट ने श्री राम की चरण पखारी

कि बन जाएगी ये तरणी मेरी 

देवी अहिल्या सी एक नारी 


देखने में दोनों भाई 

लग रहे थे एक से 

पहचाना मित्र सुग्रीव को 

श्रीराम ने पुष्पमाला के भेद से 


हर गली और हर शहर 

हो रहा जयकार उनका 

आ रहे सिया राम घर को 

हो रहा सत्कार उनका 









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