अपने दिल में वो ग़ुल ही नहीं सख़्त पत्थर भी रखता है

 


अपने दिल में वो ग़ुल ही नहीं
सख़्त पत्थर भी रखता है

दिलकश आँखों में समंदर ही नहीं
तेज़ खंज़र भी रखता है

ग़र राब्ता रखना भी उससे
तो फासलों से रखना

ग़ुलाम कर लेगा वो, पास अपने
जादू मंतर भी रखता है

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