न ग़ुल से है निस्बत न गुलज़ार से है



न ग़ुल से है निस्बत
न गुलज़ार से है
मसअला मेरा तो फ़क़त
दिल ए बेक़रार से है

अहवाल दिल का बयां
कर चूका लफ़्ज़ों में बहुत
सुख़न फ़हम है वो
हाल ए दिल क्या समझे

राब्ता उसका फ़क़त
मेरे अब अशआर से है

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