सहरा ए ज़िस्म से होकर

 सहरा ए ज़िस्म से होकर 

वो जब गुजरता  है  
जिग़र के पास मेरे 
देर तक ठहरता  है 

रफ़्ता- रफ़्ता  वो मख़मूर  
मुझमे फिर बिखरता  है 
अक़्स  बनकर  मेरा  वो  
दिल में  फिर उतरता  है  

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