नाहक ही उदास होते है हम


नाहक ही उदास होते है हम
ये सोचकर की हमें वक़्त कम
मिला है ख़ुदा से जिंदगी को
हसीन बनाने के लिए.


चंद लम्हो की मोहलत
हासिल है गुलों को भी
अपनी खुश्बू ए रंगत पे
इतराने के लिए.


चमन के तितलियों से
दिलों के याराने के लिए
फ़िज़ां में अपनी खुश्बू को
बिखराने के लिए.


या फिर खुद फ़ना होकर
किसी मेहबूब को मिले
नज़राने के लिए..


वक़्त गुलों के नसीबों में भी
कम ही है खिलने और फिर
खिलकर मुरझाने के लिए

रात के कुछ पहर की जिंदगी है
चरागों को मिली अपनी रौशनी भी
फैलाने के लिए

किसी भटके राही को
मंज़िल का रास्ता भी
दिखलाने के लिए

किसी गरीब के जिंदगी में
अँधेरी एक रात से निजाद भी
दिलाने के लिए

किसी बच्चे को अपनी
रौशनी में जीवन की पाठ
सिखलाने के लिए

या शम्मा के चाहत में फ़ना
होने को किसी परवाने के लिए

फिर हवाओं से लड़कर
बुझ जाने या हाथों से गिरकर
टूट जाने बिखर जाने के लिए

वक़्त तो चरागों के नसीबों में भी
कम ही है मिटटी से चराग़ बनने
और फिर मिटटी में मिल जाने के लिए

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