ख़ुदा फिर एक नई दुनिया बना




ये माना की मानते है उसे
सब अलग अलग रूपों में
अलग अलग नामों से

ये जाना की जानते है उसे
किताबों में लिखी बातों से
उसके हर एक करामातों से

जब पूरी कायनात उसी ने बनाई है
उसी की है तो क्या वाकई उसे
किसी मकां या कोठी की जरुरत है

अजीब इत्तेफाक है, लोग बेघर सड़क पर
जीते है मर जाते है, उन्हें तो जीने के लिए
बस दो रोटी की जरुरत है

ख़ुदा फिर एक नई दुनिया बना
जहाँ ना कोई जाती हो ना धर्म हो
बस इंसान रहते हो

नफरतों का नामोनिशां न हो
मोहब्बतों के पासबाँ रहते हो


                                                                                                                                                    

पासबाँ : रक्षक





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