शहीदों ने एक नया हिन्दोस्तां बनाया था

 

लहू से सींचकर ज़र्रे - ज़र्रे को
सहरां में एक नया गुलिश्तां बनाया था

खिलेंगे गुल यहाँ हर रंग ओ खुशबू के
ख़्वाब दिल में बागबां ने यही सजाया था

अमन के गीत दरख्तों पे गुनगुनायेंगे
कज़ा से छीनकर ये बुल्बुलिस्ताँ बनाया था

आज़ादी के राहों में फ़ना होकर के
शहीदों ने एक नया हिन्दोस्तां बनाया था



बुल्बुलिस्ताँ --बुलबुलों का बाग़

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Anything to comment regarding the article or suggestion for its improvement , please write to me.