बैठे रहने से कोई मंजिल कहाँ मिलती है

 

बैठे रहने से कोई मंजिल कहाँ मिलती है

चलते रहने से ही सफ़र आसां होती है

 

परिंदा गर बुलंद-परवाज़ी पे आ जाये

फिर उससे दूर कहाँ आसमां होती है

 

बुलंद-परवाज़ी --ऊँची उड़ान

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